मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

Shayari Part 21

जब हुई थी मोहब्बत तो लगा किसी अच्छे
काम का है सिला।
खबर न थी के गुनाहों कि सजा ऐसे भी
मिलती है।
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कल रात मैंने अपने सारे ग़म कमरे की दीवारों पे
लिख डाले ,
बस हम सोते रहे और दीवारें रोती रहीं …
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“ संग ए मरमर से तराशा खुदा ने तेरे बदन को ,
बाकी जो पत्थर बचा उससे तेरा दिल बना
दिया .
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क्या हुआ अगर जिंदगी में हम तन्हा है ???
लेकिन इतनी अहमियत तो दोस्तो में बना ही
ली है कि …
मेला लग जायेगा उस दिन शमशान में,
जिस दिन मैँ चला जाँऊगा आसमान में !!
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जब भी देखा मेरे कीरदार पे धब्बा कोई
देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई
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ले रहे थे मोहब्बत के बाज़ार में इश्क की चादर …
लोगो ने आवाज़ दी कफन भी ले लो…
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इश्क करने चला है तो कुछ अदब भी सीख लेना ,
ए दोस्त
इसमें हँसते साथ है पर रोना अकेले ही पड़ता है .
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बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर …
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है ….
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थक गया हूँ मै, खुद को साबित करते करते ,
दोस्तों ..
मेरे तरीके गलत हो सकते हैं , लेकिन इरादे नहीं
…!!!
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तलाश है इक ऐसे शक्स की , जो आँखो मे उस
वक्त दर्द देख ले ,
जब दुनियाँ हमसे कहती है , क्या यार तुम हमेशा
हँसते ही रहते हो ..