शुक्रवार, 1 जुलाई 2016

Shayari part 7

रुखसत हुए तेरी गली से हम आज कुछ इस कदर ……..
लोगो के मुह पे राम नाम था….
और मेरे दिल में बस तेरा नाम था….
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तेरे चेहरे पर अश्कों की लकीर बन गयी ,
जो न सोचा था तू वो तक़दीर बन गयी !!.
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हमने तो फिराई थी रेतो पर उंगलिया ,
मुड़ कर देखा तो तुम्हारी “तस्वीर “बन गयी .!!
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“बिकता है गम इश्क के बाज़ार में,
लाखों दर्द छुपे होते हैं एक छोटे से इंकार में,
हो जाओ अगर ज़माने से दुखी ,
तो स्वागत है हमारी दोस्तीके दरबार में.”
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क्या रखा है अपनी ज़िँदगी के इस अफ़साने मेँ..
कुछ गुज़र गई अपना बनाने मेँ, कुछ गुज़र गई
अपनो को मनाने मेँ ..

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मज़हब, दौलत, ज़ात , घराना , सरहद, ग़ैरत,
खुद्दारी ,
एक मुहब्बत की चादर को , कितने चूहे कुतर गए …
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लोगों ने पूछा कि कौन है वोह
जो तेरी ये उदास हालत कर गया ??
मैंने मुस्कुरा के कहा उसका नाम
हर किसी के लबों पर अच्छा नहीं लगता …!
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आंखे कितनी भी छोटी क्यु ना हो ,
ताकत तो उसमे सारे आसमान देखने कि होती
हॆ…
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सुनी थी सिर्फ हमने ग़ज़लों में जुदाई की
बातें ;
अब खुद पे बीती तो हक़ीक़त का अंदाज़ा
हुआ !!
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टुकड़े पड़े थे राह में किसी हसीना की तस्वीर
के…
लगता है कोई दीवाना आज समझदार हो
गया है …!!!!