शुक्रवार, 1 जुलाई 2016

Shayari part 3

मज़बूरियाँ थी उनकी … और जुदा हम हुए
तब भी कहते है वो…. कि बेवफ़ा हम हुए…..
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छोड़ दो किसी से वफ़ा की आस,
ए दोस्त
जो रुला सकता है , वो भुला भी सकता है .!
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इतना जलाने के बाद भी, वो ज़ालिम धुआं
ढूंढते हे ,
“निकलते हे आंसू कहाँ से इतने ”?, पूछकर , कुआं ढूंढते
हे…
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गम इस कदर मिला कि घबराकर पी गए हम ,
खुशी थोड़ी सी मिली , उसे खुश होकर पी गए
हम ,
यूं तो ना थे हम पीने के आदी,
शराब को तन्हा देखा तो तरस खाकर पी गए
हम ..
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तू मुझे ओर मैं तुझे इल्ज़ाम देते हैं मगर,
अपने अंदर झाँकता तू भी नही , मैं भी नही … !!
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ख़ुशी मेरी तलाश में दिन रात यूँ ही भटकती
रही….
कभी उसे मेरा घर ना मिला कभी उसे हम घर
ना मिले ….!!
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क्यूँ शर्मिंदा करते हो रोज, हाल हमारा पूँछ
कर ,
हाल हमारा वही है जो तुमने बना रखा है …
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सोचा था की ख़ुदा के सिवा मुझे कोई
बर्बाद कर नही सकता …
फिर उनकी मोहब्बत ने मेरे सारे वहम तोड़
दिए …….
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यही सोच के रुक जाता हूँ मैं आते -आते ,
फरेब बहुत है यहाँ चाहने वालों की महफ़िल में।
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कभी वादे भी तोड़ लिया करो तुम ,
जरा रूठने का तज़ुर्बा हासिल हो जाए