शनिवार, 21 नवंबर 2015

Shayari Part.41

1. आवारगी छोड़ दी हमने तो लोग भूलने लगे है
वरना, . . . .
शोहरत कदम चूमती थी
जब हम बदनाम हुआ करते थे….!!!

2. जहाँ पे फूल खिलने थे,
वही खिलते तो अच्छा था,
तुम्ही को हमने चाहा था,
तुम्ही मिलते तो अच्छा था...!!

3. महफील भी रोयेगी, हर दिल भी रोयेगा ,
ङुबी जो मेरी कस्ती तो साहील भी रोयेगा ,
हम इतना प्यार बीखेर देगे इस दुनीया मे के,
मेरी मौत पे मेरा कातील भी रोयेगा……!!

4. नादान है कितना वो कुछ समझता ही नहीं......
सीने से लगा के पूँछता है के धड़कने तेज क्युं हैं....॥

5. पूछने से पहले ही सुलझ जाती हैं सवालों की गुत्थियां...
कुछ आँखें ही इतनी हाज़िर जवाब होती हैं.

6. ये जो डूबी हैं मेरी आँखें अश्क़ों के दरिया में
ये माटी के पुतलों पर भरोसे की सज़ा हैं

7. वक्त नूर को बेनूर कर देता है,
छोटे से जख्म को नासूर कर देता है,
कौन चाहता है अपने से दूर होना,
लेकिन वक्त सबको मजबूर कर देता है

8. कोन किसका रकीब (enemy) होता है,
कोन किसका हबीब (friend) होता है
बन जाते रिश्ते -नाते जहाँ
जिसका नसीब होता है|

9. तू चाँद मे सितारा होता आसमान के एक आशियाना में
एक आशियाना हमारा होता लोग तुम्हे दूर से देखते
नज़दीक से देखने का हक़ बस हमारा होता|

10. कोन जाने कब मौत का पैगाम आ जाए,
ज़िंदगी की आखरी शाम आ जाए,
हमे तो इंतजार है उस शाम का
जब हमारी ज़िंदगी किसी के काम आ जाए..